ईश्वरचंद्र विद्यासागर एक प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, और परोपकारी व्यक्ति थे जिनका जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल प्रांत के पश्चिम मिदनापुर जिले के बिरसिंह गांव में हुआ था। उनके पिता ठाकुरदास बंद्योपाध्याय और माता भगवती देवी थे। वे एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। ईश्वर चंद्र विद्यासागर बंगाल के पुनर्जागरण के स्तंभों में से एक थे

उन्हें कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज से 'विद्यासागरकी उपाधि से नवाजा गया था। संस्कृत शब्द 'विद्या' का अर्थ है ज्ञान और 'सागर' का अर्थ सागर था, अतः  'विद्या सागर' का अर्थ है 'ज्ञान का सागर'। उन्होंने सामाजिक मुद्दों और रूढ़िवादी मान्यताओं में सुधार की आवश्यकता पर कई किताबें लिखीं है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर का 70 वर्ष की आयु में 29 जुलाई 1891 को निधन हो गया।



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जो व्यक्ति दूसरों  के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है|

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संसार में सफल और सुखी वही लोग हैं जिनके अन्दर विनय हो और विनय विद्या से ही आती है|

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विद्या सबसे अनमोल धन है, इसके आने मात्र से ही सिर्फ अपना ही नहीं अपितु पुरे समाज का कल्याण होता है|

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समस्त जीवों में मनुष्य सर्वश्रेष्ट बताया गया है, क्यूंकि उसके पास आत्मविवेक और आत्मज्ञान है|

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कोई मनुष्य अगर बड़ा बनाना चाहता है तो वह छोटे से छोटा काम करे क्यूंकि स्वालंबी ही श्रेष्ट होते है|

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बिना कष्ट के ये जीवन बिना नाविक के नाव जैसा है,  जिसमे खुद का कोई विवेक नही|

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अगर सफल और प्रतिष्टित बनना है, तो झुकना सीखो क्यूंकि जो झुकते नहीं समय की हवा उन्हें झुका देती है|

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एक मनुष्य का सबसे बड़ा कर्म दूसरों की भलाई और सहयोग होना चाहिए जो एक संपन्न राष्ट्र का निर्माण करता है|

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मनुष्य कितन भी बड़ा क्यों न बन जाये, उसे हमेशा अपना अतीत याद करते रहना चाहिए|

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अपने हित से पहले , समाज और देश के हित को देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिक का धर्म होता है|

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जो नास्तिक है उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ईश्वर में विश्वास करना चाहिए इसी में उनका हित है|

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दूसरों के कल्याण से बढ़कर दूसरों और कोई नेक काम और धर्म नही होता|

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संयम विवेक देता है, धयान एकाग्रता प्रदान करता है, शांति संतुष्टि और परोपकारी मनुष्यता देती है|

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